5/9/21

माँ पर सबसे सुंदर कविता- मां एक शब्द नहीं, एक अक्षर का शब्द है माँ, माँ जन्मदात्री है,मातृशक्ति की अनन्य ,मां तुझे सलाम,माॅ विपदा पर भारी, है,मां का रुप प्रकृति जान,अस्तित्व मेरा हो , मां बेटे का है,

💕  इस जग में माँ से बढ़ कर कोई ना दूजा...💕

मातृदिवस के अवसर पर चयनित सभी रचनाकारों की रचनाएं साहित्य आजकल की यह ऑफिसियल वेबसाइट sahityaaajkal.com से प्रकाशित कर दी गई है। सभी की रचनाएं नीचे प्रेषित की जा रही है जरूर पढ़ें औऱ टिपण्णी करें।🌹🌹

   सभी रचनाकारों को बेहतरीन सृजन करने हेतु बहुत बहुत बधाई। 

(1)

मातृ दिवस पर मेरी नवीनतम रचना___


____ मां____
***********
मां एक शब्द नहीं
मां ईश्वर का रूप है
ईश्वर की अद्भुत श्रृष्टि
मां श्रृष्टि कारक जग का
मां वगैर जगत है अधूरा।

मां पहली भाषा
बोली प्रथम
उच्चारित शिशु का
मां बीना घर सुना
मां पालनहारा
मां अन्नपूर्णा
मां देवी ज्ञानी
मां ममता की मूरत
मां दया निधान
मां सहनशीला
मां  प्रदर्शक
मां से जितना सीखूं
कभी ना मां सा ज्ञानी
मां की सेवा जो करता
पाता वहीं है मेवा
मां देती सदा सुशिक्षा
सत् पर पर सीखाती चलना
फैले यश मान जग में
हर मां की होती इच्छा
मां में शक्ति
मां में भक्ति
मां धन दौलत सारा
मां की सेवा हीं ईष्ट पूजा
बनो असीम श्रवण जैसा।।
******************""""

स्वरचित__असीम चक्रवर्ती
बी.कोठी,,, पूर्णिया (बिहार)

यह मौलिक स्वरचित रचना है,,, कहीं प्रकाशन हेतु नहीं भेजी गई है

(2)




*माँ*

विधा : कविता


"माता दिवस पर मेरी रचना सभी पुत्रो की ओर से अपनी अपनी माताओं के चरणों में समर्पित है"


एक अक्षर का शब्द है माँ,

जिसमें समाया सारा जहाँ।

जन्मदायनी बनके सबको,

अस्तित्व में लाती वो।

तभी तो वो माँ कहलाती,

और वंश को आगे बढ़ाती।

तभी वह अपने राजधर्म को,

मां बनकर निभाती है।।


माँ की लीला है न्यारी,

जिसे न समझे दुनियाँ सारी।

9 माह तक कोख में रखती,

हर पीड़ा को वो है सहती।

सुनने को व्याकुल वो रहती,

अपने बच्चे की किलकारी।।


सर्दी गर्मी या हो बरसात,

हर मौसम में लूटती प्यार।

कभी न कम होने देती,

अपनी ममता का एहसास।

खुद भूखी रहती पर वो,

आँचल से दूध पिलाती है।

और अपने बच्चे का,

पेट भर देती है।।


बलिदानों की वो है जननी।

जब भी आये कोई विपत्ति,

बन जाती तब वो चण्डी।

कभी नहीं वो पीछे हटती,

चाहे घर हो या रण भूमि।

पर बच्चों पर कभी भी,

कोई आंच न आने देती।।


माँ तेरे रूप अनेक,

कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी।

माँ देती शिक्षा और संस्कार,

तभी बच्चों का होता बेड़ापार।

ढाल बनकर खड़ी वो रहती,

हरहाल में बच्चों के साथ।

तभी तो बच्चों को,

मिलती जाती कामयाबी।।


सदा ही लुटाती बच्चों पर,

अपनी ममता स्नेह प्यार।

माँ तेरी लीला है अपरंपार,

जिसको समझ न सका संसार।

इसलिए तो कोई उतार,

न सका माँ का कर्ज।

तभी तो जगत जननी,

माँ ही कहलाती है।।


माता दिवस पर सभी को पाठको को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

माताश्री के चरणों में चरण स्पर्श।

जय जिनेन्द्र देव 

संजय जैन (मुम्बई)

09/05/2021


(3)


🌺 *माँ की*महिमा* 🌺


माँ जन्मदात्री है,

शुभदिन है शुभरात्रि है |

           माँ हमारी प्रथम गुरु, 

           जिससे शिक्षा होती शुरू |

माँ ही हमारी भक्ति है,

माँ ही हमारी शक्ति है |

            माँ ममता का सागर है,

          करुणाभरी एक गागर है |

माँ नैनो की ज्योति है,

जीवन का अनमोल मोती है |

             माँ प्रकृति का उपहार है,

              माँ ही हमारा संसार है |

माँ की  सेवा निष्काम है,

माँ ही चारो धाम है |

              माँ गगन है,माँ धरा है,

            माँ से जीवन हरा भरा है |

माँ अमृत की धारा है,

जिसने जीवन को संवारा है |

              माँ ही हमारी दृष्टि है,

              माँ ही हमारी सृष्टि है |

कितना प्यारा माँ का आँचल,

जो देखभाल करता है हरपल |

            माँ के चरणों मे तीर्थ सारे,

            जहाँ कष्ट निवारण हो सारे |

माँ जननी है, माँ माता है,

माँ ही भाग्य विधाता है |

              माँ छाँव है, माँ धूप है,

             माँ परमात्मा का ही रूप है |              

  माँ जीवन का दर्पण है

  माँ को सर्वस्व अर्पण है |

            स्वरचित 

        अर्चना चंचल (अध्यापिका )

          दिल्ली

(4)

मात्र दिवस

मातृशक्ति की अनन्य ।

भक्ति करें जड़ चैतन्य ।।

देवता, ऋषि, मनुष्य ।

दनुज, नाग,नर अवश्य ।।

आज मातृ दिवस धूम ।

काश चरण कमल चूम ।।

भाव उर विराजे मध्य ।

पुत्र जननि सानिध्य ।।

व्यथित् विवश मातु नहीं।

पुत्र का कर्तव्य यही ।।

 रचना

शशिकान्त दीक्षत व्यथित्

फतियाँपुर, हरदोई, उ.प्र


(5)



सादर नमन 

*विश्व मातृ दिवस*

मां तुझे सलाम    

  *मां को नमन*

*मां ने ही किया मेरा जीवन निर्माण*

*वो मां ही है मेरा भगवान*


    *मां ममता का बडा बगीचा*

    *मां ने ही मेरे जीवन को सिचा*

 

   *मां का सिर पर इतना भार*

   *सात जनम तक नहीं सकूंगा मैं उतार*


*मां ही है ये जिंदगी की दाता*

*माता बिना जन्म नही मैं पाता*


  *मां का आशीर्वाद ही करें मेरी रक्षा*

  *मां का आंचल करें मेरी सुरक्षा*


*मां की करूं मैं खूब बढाई*

*पीना खाना मां सिखलाई*


     *मां से माया मां से काया👌*

     *मां से ही मैंने सब कुछ पाया*


*मां को ही सत सत करूं नमन*

*मां ही अमन मां ही मेरा चमन*

मेरी मां मेरी जिंदगी है

      जय माता दी

गीतकार फिल्मकार सायर एक्टर अविनाश यादव महू जिला इंदौर


(6)



              कविता:- माॅ -नारी                      

माॅ विपदा पर भारी है         

पालक पोषण धारी है        

मां का आंचल नारी है           

 प्रणाम करें यह हमारी हैं         

 मां दुख नहीं जताती न्यारी है      

 मां प्रेम का प्याला  प्यारी है        

मां का क्या बखान करें सयानी है

 मां दुखों का सहारा बखानी है   

गुण दोष उसमें ना देखो अशिक्षित है  

हरदम उसको संभालो रक्षित है 

घर-घर में है ईश्वर पुल कित है। 

मॉ खुश है तो परिवार सुरक्षित है 

कवि प्रवीण पंड्या बस्सी डुंगरपुर राजस्थान

(7)

*विश्व मातृ दिवस*

 पर आप सभी को बधाई एंव शुभकामनाएं।

      *मां को नमन*


*मां का रुप प्रकृति जान*

*मां हो बच्चे की भगवान*


    *मां ममता का बडा बगीचा*

    *माता ने जीवन को सिचा*

 

   *मां का सिर पर इतना भार*

   *सात जन्म नही सके उतार*


*मां होती है संसार की दाता*

*माता बिना जन्म नही पाता*


  *मां ही करती है जीवन रक्षा*

  *मां का आंचल सभी सुरक्षा*


*मां ही जन्मी मां ही बढाई*

*पीना खाना मां सिखलाई*


     *मां से माया मां से काया*

     *मां से हमने है सब पाया*


*मां को सत सत करे नमन*

*मां ही अमन मां ही चमन*

       जयहिंद 

   जय भारत माता

अशोक कुमार जाखड़़ निस्वार्थी

रिटायर्ड       सी.आई.एस.एफ

ढाणा झज्जर हरियाणा 124146


(8)


विधा :- कविता

शीर्षक :- माँ



अस्तित्व मेरा हो इस जग में, माँ नौ माह तुमने तप किया

हर दुख को सुख माना तुमने, फिर तुमने मुझे जीवन दिया....! 

सारा कष्ट अपना भूल गई तू, जब गोद में मुझको लिया

जीवन भर में ऋण चुका न सकता, मैं तेरा एक चिंगारी हूँ

तुमने मुझे जन्म दिया माँ, मैं कृतज्ञ आभारी हूँ....!!


अनेकों दिल पर छाया मैंने, तेरे जैसा ना कोई प्यार किया

जब भी मैंने खाया ठोकर, लबों पर तेरा ही नाम आया....! 

तेरी ममता जन्नत सी प्यारी, देवताओं ने भी स्वीकार किया

माँ तेरी महकती आँगन का, मैं एक छोटा किलकारी हूँ

तुमने मुझे जन्म दिया माँ, मैं कृतज्ञ आभारी हूँ....!!


जब पहली बार मैं आँखे खोला, सामने बस तुझको पाया

देख कर तेरी सुरत को माँ, मुझे भगवान् नजर आया....! 

मेरे गूंगे जुबान को तुने, पहली अक्षर, सुर और ताल दिया

फिकी-फिकी मेरी दुनिया को, तुने खुशियों के रंगो से भर दिया

तुमने मुझे जन्म दिया माँ, मैं कृतज्ञ आभारी हूँ....!!


बुरी नजर ना लग जाए मुझको, तुमने मुझे काला टीका किया

बचपन से मेरी शिक्षक बनकर, मुझे भी शिक्षक बना दिया....! 

जब दुनिया मुझे नालायक कहता, तब बस तुमने मुझपर अभिमान किया

मेरा चारों धाम तेरी चरणों में माँ, मैं तेरा तीर्थयात्री हूँ

तुमने मुझे जन्म दिया माँ, मैं कृतज्ञ आभारी हूँ....!!


         ऋषि रंजन

      दरभंगा (बिहार)

स्वरचित एंव मौलिक रचना ।


(9)

मां बेटे का है इस जग में सबसे सुन्दर नाता,

कैसे बताऊं मै सबको मै मां बिन ना रह पाता,

जन्म दिया है मां ने मुझको उसको कैसे छोड़ूं,

उसके सिवा ना भाए कोई किससे नाता जोडं,

मां ने मुझको कैसे पाला कैसे किसको बताऊं,

अपनी मां के चरणों पे मै तो बलिहारी जाऊं,

उसकी दुआएं पावन कितनी जिसको भी लग जाएं,

मुर्दे को वो जिंदा कर दे, सबको सुख पहुंचाएं,

जब वो सर पर हाथ फिरा ए आंखे नम हो जाएं,

कभी दुःखी ना होता मै जब वो हंसके गले लगाएं।

 सचिन कुमार सिंघल" सागर"


(10)



मां

-- -- -- --

नारी कुल विस्तारक कहीजै, संस्कार की प्रदाता।

प्रथम शाला बच्चों की, ममता की प्याली माता।।


हरदम चिंता रहती मन में,कुटुंब और संतान की।

 तीन लोक में तेरी कीर्ति,कमी नही पहचान की।।


कपड़े धोती और नहलाती,बना-ठना संवारती।

सुलाती-जगाती समय पर,प्रेमिल नजर निहारती।।


ये चिंतन करती रहती,खुशियां चाहती सबकी है।

 फले-फुले कुटुंब आस ये,माला जपती रबकी है।।


नही काम से निवृत्त होती,करती जाती काम सभी।

किस मिट्टी की बनी हुई,करती ना आराम कभी।।


भला-बुरा पापा का सुनती,बीच हमारे आती तूं।

खिला-पिला सारे घर को,अंत मे खाना खाती तूं।।


सारे सुख किनारे कर के,सुखी सभी को रखती है।

ध्यान एक-एक पे देती,जरा कभी नही थकती है।।


अपनों की खुशियों के लिए,सदा दुआएं करती है।

समझाती बड़े प्यार से,सद्गुण दिल में भरती है।।


प्यार की मूर्त दिल की सच्ची,मन खुली किताब है।

ईमानदार नही जग में ऐसा,मां तो लाजवाब है।।


मां तेरी निर्मल हंसी,आंखों में प्यार झलकता है।

तेरे बिन सारे सुख व्यर्थ,ये जग सुना लगता है।।


----- जबरा राम कंडारा


स्वरचित व मौलिक




(11)



*मां का हूं*

मैं जो भी हूं,पूरा का पूरा मेरी मां का हूं,

मैं कलश,ऊर्जा का छलकता मां का हूं,


तुमने जो देखा,मुझे पहले दिन से अब तक,

एक खिलौना,मैं हंसता-गाता मेरी मां का हूं,


तुमने जो सुना, मुझे आदि  से आज  तक,

संगीतमय छंद,मधुर आलाप मेरी मां का हूं,


तुम जो कहते हो, वाह- वाह क्या बात है,

हां ये गीत मेरा,पर रुको यार! मैं तो मेरी मां का हूं,

मेरी सांस मां

हर आस मां

मेरी कश्ती मां

सपनों की बस्ती मां......,

अरे-अरे यूं मत बहो, ओ प्यारे! फिर ठहरो! सुनो!

सृष्टि का कण-कण कह रहा है,मैं मेरी मां का हूं।


*विवेक दीप*

चूरू, राजस्थान




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1 comment:

  1. एक से बढ़कर एक रचनाऐं साहित्य आजकल के माध्यम से सभी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए मंच को साधुवाद एवम् कवियों की जितनी भी प्रसंशा की जाय कम है।

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