8/22/24

तुम न्याय का याचन मत करना (कविता):- विजय कुमार सुतेरी

रचना पृष्ठभूमि- यह रचना पश्चिम बंगाल में हाल में हुए बलात्कार पीड़ित एक डॉक्टर बिटिया को समर्पित है ,जिसमे महिलाओं को स्वयं को कमजोर समझने की मानसिकता से ऊपर उठकर अपनी शक्ति और ऊर्जा को पहचानने के विषय में बताया गया है।

शीर्षक -न्याय याचना

तुम न्याय का याचन मत करना,

उम्मीद बांध कर मत रखना

हो सके राह में चलते चलते।

सर को चुनरी से मत ढकना।


तुम एक रोज यूंही जरा गौर करना

गाहे बगाहे खुद के भीतर जरा शोर करना

तुम पूछना खुद से कि तुम क्या खो रही हो

अस्तित्व हीन सपनो की लंबी नीद सो रही हो।


कोई आए और सब कुछ रौंद कर चला जाए

तुम्हारा जिस्म, तुम्हारी रूह तक छलनी कर जाए

और तुम्हारे पीछे मोम्बतियो के उजाले में लोग ,

इंसाफ मांगते कुछ रात सड़कों पर चिल्लाएं ।


है मिला किसे इंसाफ यहां, मोमबत्ती की रोशनी तले

राख बहुत से घर हुए हैं, कुछ जले कुछ अधजले ।

कुछ समाचार में छाए,कुछ अखबारों की सुर्खियों के नाम रहे

कुछ इज्जत की खातिर, चार दीवारों में गुमनाम रहे।


लथपथ रक्त से सना तन बदन, दूर तक जाती खून की धार।

इन दृश्यों की परपाटी अंतहीन चली आ रही है।

तुम्हारी खुद को कमजोर कहने की परंपरा आज,

किसी होनहार डॉक्टर की बलि खा रही है।


कोई कोना ढूंढ लेना खुद को सुरक्षित रखने के लिए

गलियां, सड़कें, अस्पताल ,खुली हवा बस इनसे दूर रहना।

सिसकियों में जीवन के रस का लुत्फ उठाना

पर भूलना मत खुद को "स्त्री और मजबूर" कहना।


हा अगर सुना है कभी "चंडी" का नरसंहार

तो संभल स्त्री! उठा खड्ग और चामुंडी तलवार।

इतिहास बना ऐसा, वो जो सदियों तक गाया जाए

हो एक तो कोई मर्दानी, जो झांसी की फिर याद दिलाए।


कोमल पुष्पों की काया के कांटे रखवाले होते हैं

 सौभाग्य बनाती नारी के हाथों में भाले होते हैं

वैभव ऐसा कि दुश्मन की बांह उखाड़े लहरा दे

हिम्मत मानो अपनी निजता के, द्वारों पर खुद पहरा दे।।


हो विषम वेदना कितनी भी

आंसू आंखों के मत चखना

तुम न्याय का याचन मत करना

उम्मीद बांध कर मत रखना।

कविता शीर्षक - न्याय याचना


कवि- विजय कुमार सुतेरी

शहर -लोहाघाट

राज्य- उत्तराखंड

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धन्यवाद

    हरे कृष्ण प्रकाश 

(युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






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