तब मैं रहूंगा तुम्हारे संग (कविता):- प्रेम ठक्कर "दिकुप्रेमी"
*शीर्षक:- बुढ़ापे तक का साथ*
जब सूरज की किरणें होंगी हल्की,
और जीवन की राहें होंगी थकती,
तब मैं रहूंगा तुम्हारे संग,
हर पल में भर दूंगा प्यार का रंग।
बुढ़ापे की छांव में, जब होंगे हम,
साथ बिताएंगे वो खट्टे-मीठे क्षण।
हाथों में हाथ, दिलों में धड़कन,
संग चलेंगे हम, जैसे हो एक ही चमन।
सपनों की बातें, यादों की छाया,
हर दर्द में बनूंगा, मैं तुम्हारा साया।
बुढ़ापे की राहों में,
ना होगी कोई दूरी।
तुम्हारे साथ चलूंगा हरदम,
इसी से होगी सम्पूर्ण मेरी ज़िंदगी,
जो अभी हो चुकी है अधूरी।
साथ में हंसेंगे, साथ में रोएंगे।
जीवन के हर मोड़ पर,
हम एक-दूसरे में खुद को खोएंगे।
बुढ़ापे तक का ये वादा है मेरा,
तुम हो मेरी आखरी ख्वाईश,
तुम ही हो मेरा जीवन सारा।
*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए*
प्रेम ठक्कर "दिकुप्रेमी"
(सुरत, गुजरात)
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हरे कृष्ण प्रकाश
(युवा कवि, पूर्णियां बिहार)
(साहित्य आजकल व साहित्य संसार)