-: शीर्षक:-
रंग बदलते नेताजी
ऐ पथ के राही, तू देख ज़रा,
कैसे ज़माना बदलता है,
सच को दबाकर झूठ,
कैसे आगे बढ़ जाता है!
ऐ पथ के राही तू देख ज़रा...
रोज़ सबेरे उठते ही वो,
कैसे जनता को लुभाता है,
ट्वीट से कर वादा नेताजी,
कैसे अपना रंग बदलता है!!
ऐ पथ के राही तू देख ज़रा...
कुर्सी हेतु टिकट के खेल में,
कैसे धनकुबेर बन जाता है,
बन निडर करे जुमलेबाज़ी,
कैसे युवाओं को तड़पाता है!
ऐ पथ के राही तू देख ज़रा...
कैसे अपना रंग बदलता है!!
सृजनकार:- हरे कृष्ण प्रकाश
(युवा कवि पूर्णियां, बिहार)
रचना स्वरचित व मौलिक
संपर्क :- sahityaaajkal9@gmail.com