प्रदूषण भरे वातावरण में हम किस साहित्यकार या राजनेता को अपनाएँ? : सिद्धेश्वर
पटना, 11 नवम्बर 2025,साहित्यकार सिद्धेश्वर का कहना है कि आज का सबसे बड़ा सवाल यही है — “हमारे देश में कौन-सी राजनीतिक पार्टी सबसे अधिक ईमानदार है?”
उनका मानना है कि जब एक व्यक्ति में भी सौ प्रतिशत इंसानियत नहीं होती, तब किसी राजनेता में सौ प्रतिशत ईमानदारी की तलाश व्यावहारिक नहीं कही जा सकती।
सिद्धेश्वर के अनुसार, प्रत्येक राजनीतिक दल स्वयं को सबसे ईमानदार बताता है, पर कोई भी यह नहीं कहता कि वह “पूरी तरह सही और पारदर्शी” है। चुनाव आते ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है, और जनता ठोस दिशा से वंचित रह जाती है।
उन्होंने कहा कि ऐसे प्रदूषित सामाजिक और राजनीतिक वातावरण में पूर्ण ईमानदारी की अपेक्षा करना व्यर्थ है, किंतु मतदान से विमुख होना भी समाधान नहीं। इस परिस्थिति में हमें वही विकल्प चुनना चाहिए जो “कम प्रदूषित” हो। सिद्धेश्वर का संदेश स्पष्ट है — “यदि हमें चयन करना ही है, तो विवेक और आत्मचिंतन के साथ करें। जाति, धर्म और स्वार्थ से ऊपर उठकर नैतिकता के आधार पर निर्णय लें — यही सच्चा लोकतंत्र
यूट्यूब पर प्रत्येक सोमवार रात 9:00 बजे से 10:00 बजे तक प्रसारित होने वाले साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सिद्धेश्वर की डायरी’ के एपिसोड-41 में सिद्धेश्वर ने उपर्युक्त विचार अपनी डायरी-पाठ के दौरान व्यक्त किए।
इसके बाद पत्रिकानामा खंड के अंतर्गत, रुचि शर्मा वाजपेयी के संपादन में इंदौर से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘कलम हस्ताक्षर’ (देवानंद विशेषांक एवं वार्षिक अंक) पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की गई। सिद्धेश्वर ने कहा कि “लोकप्रिय पत्रिका ‘धर्मयुग’ की परंपरा में आज प्रकाशित ‘कलम हस्ताक्षर’ का हर अंक अपने आप में अभूतपूर्व है। देवानंद विशेषांक अत्यंत संग्रहणीय बन पड़ा है।”
कार्यक्रम में सिद्धेश्वर द्वारा प्रस्तुत पंक्तियाँ—“प्यार के सागर का अंदाज़ा है क्या,/कोई आँखों की गहराई में डूब जाता है क्या?/तेरी खामोशी देख रुकने लगती हैं धड़कनें,/ तुम्हारे दिल में भी कुछ-कुछ होता है क्या?”— दर्शकों को विशेष रूप से भावविभोर कर गईं।
एपिसोड में दीक्षित दनकौरी, राहत इंदौरी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, और ग़ुलज़ार की शायरी भी प्रस्तुत की गई।
भेंटवार्ता के तहत, ‘छपते-छपते’ अख़बार के संपादक विशंभर नेवर ने कहा कि “यदि साहित्यकार में राजनीति के प्रति रुझान है, तो उसे इसमें सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। साहित्य राजनीति से अलग होकर नहीं चल सकता।”
खुला मंच खंड में युवा कवयित्री राज प्रिया रानी ने अपनी कविता का पाठ किया। उन्होंने कहा कि यह एपिसोड नए और पुराने साहित्यकारों के लिए अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि “इस तरह के कार्यक्रम यूट्यूब पर साहित्य को नई दिशा देते हैं, और समयाभाव में भी बाद में देखे जा सकते हैं।”
लेखकों और पाठकों दोनों की सक्रिय भागीदारी के कारण यह एपिसोड देशभर में लोकप्रियता प्राप्त कर रहा हैl यह कार्यक्रम साहित्यिक संस्कृति का सशक्त मंच बन गया है।
प्रस्तुति : बीना गुप्ता
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