9/26/23

स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों ने निकाली नशामुक्ति जागरूकता रैली

साहित्य आजकल की खबर:- स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों ने निकाली नशामुक्ति जागरूकता रैली 


पूर्णियां विश्वविद्यालय सह पूर्णियां कॉलेज पूर्णियां के स्नातकोत्तर गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के छात्रों द्वारा नशामुक्ति जागरूकता रैली निकाली गई। जागरूकता रैली को पूर्णियां यूनिवर्सिटी के सी सी. सी. डी सी डॉ एस एन सुमन ने हरी झंडी दिखा कर पूर्णियां विश्विद्यालय के बॉयज हॉस्टल से रवाना किया। 

      नशामुक्ति जागरूकता रैली का नेतृत्व कर रहे छात्र हरे कृष्ण प्रकाश ने जानकारी देते हुए कहा कि स्नातकोत्तर तृतीय सेमेस्टर गणित विभाग का सीआईए परीक्षा समाप्त होने के उपरांत यह जागरूकता रैली निकाली गई है। जिसमें पूर्णियां कॉलेज और पूर्णियां विश्विद्यालय पूर्णियां गणित विभाग तृतीय सेमेस्टर के समस्त छात्र-छात्राएं संयुक्त रूप से शामिल हुए हैं। सभी छात्रों के हाथों में नशामुक्त रहे बिहार, सुरक्षित रहे घर परिवार। "करोगे नशा तो बोनोगे रोगी, छोड़ोगे नशा रहोगे निरोगी"। सत्संगति से तुम नाता जोड़ो, ध्रुमपान करना अभी से छोड़ो। शराब पीकर जाओगे, घर नहीं पहुंच पाओगे, ''जन जन की यही पुकार-नशा मुक्त हो हर परिवार, आदि स्लोगन लिखी पट्टिकाओ व नारो के साथ भ्रमण किया। रैली विश्वविद्यालय के बॉयज हॉस्टल से होते हुए पूर्णियां कॉलेज परिसर स्थित महात्मा गांधी स्मारक पर माल्यार्पण कर समाप्त हुई। इस रैली का मुख्य उद्देश्य तमाम युवाओं को नशा से दूर रहने के प्रति जागरूक करना है। क्योंकि जब तक युवा जागरूक होकर नशे से दूर नहीं रहेंगे तब तक समाज का उत्थान संभव नहीं है।

        वहीं सी सी डी सी एस एन सुमन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि नशा उस दीमक की तरह है जो हमारी संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को दिन प्रतिदिन खोखला कर रहा है। इससे हम सभी को बचने की जरूरत है। प्रोफेसर डॉ नवनीत कुमार व किसलय किशोर ने संयुक्त रूप से कहा कि आज के योवाओं में बढ़ते नशे की लत हम सभी के लिए चिंता का विषय है और इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने से युवा जागरूक हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि युवा ही देश की रीढ़ है और आज के समय यह देखा जा रहा है कि ज्यादातर युवा इस लत के शिकार होते जा रहे हैं अतः इसको लेकर सबों को जागरूक करने की जरूरत है। वहीं प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा कि युवा सिर्फ नशीले पदार्थो के ही आदि नहीं है वे तो फोन के इतने आदि हो चुके हैं जो नशे के ही समान है। 

         वहीं छात्र राहुल कुमार, मुकेश कुमार ने संयुक्त रूप से कहा की हमारा समाज तभी बदल सकता है जब हम अपने आप को बदलेंगे अर्थात जब हम युवा नशा से दूर रहेंगे तभी देश नित नई बुलंदियों को छू सकेगा। इस जागरूकता रैली में मुख्य रूप से विश्विद्यालय सी सी डी सी एस एन सुमन, विभागाध्य डॉ अश्वनी कुमार मिश्रा, डा नवनीत कुमार, किसलय किशोर, संजय कुमार, छात्र हरे कृष्ण प्रकाश, राहुल कुमार, लक्ष्मी कुमारी, मुकेश कुमार, डिंपल कुमारी, मधु कुमारी, मिठ्ठू कुमार, मधुलता, रौशन कुमार, दीपक कुमार, पारस झा, मो वारिस आलम, कुमारी स्वेता, रजत कुमार, आरती कुमारी, साहिबा परवीन, अंशु मनाली, पूनम कुमारी, सुप्रिया कुमारी, प्रीति कुमारी, जूही कुमारी, शिल्पी कुमारी, पूजा रानी, पंकज कुमार, सुमन सौरव, राहुल राज, कोमल कुमारी, सोनू कुमार, पूजा रानी, दिवाकर कुमार, चंदन कुमार, आदित्य कुमार साह, मो जुलक्वाररेन, मो आमिर हुसैन, रौशन कुमार यादव, मीनाक्षी कुमारीआदि सैकड़ों छात्र छात्राएं मौजूद रहे।





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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






9/25/23

समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ': सिद्धेश्वर

'समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ' : सिद्धेश्वर

"समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में ": रजनी श्रीवास्तव अनंता 

       पटना : 25/09/2023 कुछ लोग गज़ल कहते हैं और कुछ लोग गज़ल कहने के पहले उसे जीते हैं । गज़ल को जीते हुए शायर अपने अंदाज में कह उठता है -" मैं कटघरे में खींचकर फिर बेवजह लाया गया, /इसमें नया कुछ भी नहीं कितनी दफा आया गया  l/इससे बड़ी बदकिस्मती क्या और हो सकती मेरी, / जब धूप थी सिर पर मेरे, तब छोड़ कर साया गया l"  

       निश्चित तौर पर एक शायर की जीवंतता स्पष्ट नजर आती है उनके इन शब्दों में! और एक सार्थक गज़ल की यही सार्थक पहचान भी है, जो न केवल वस्तु औऱ लय के नाते अपितु कथ्य और शैली के नाते भी, पाठकों को अपने ढंग से आकर्षित करता है l समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l यही वजह है कि अनिरुद्ध सिंहा जैसे प्रखर शायऱ भी उनके संबंध मेंकहते हैं -" संजीव प्रभाकर की गज़लों की लोकप्रियता और सफलता का कारण उनकी भाषा की सादगी है l जो पारंपरिक गज़ल की जटिलताओं के चढ़ाव को पार करते हुए अपने मुकाम को हासिल कर लेता है l वह भी बिना शब्दों की कलाबाजी किए l"

              भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में,  गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित ऑनलाइन हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के संयोजक सिद्धेश्वर ने अपनी डायरी के माध्यम से उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l गांधीनगर के सुप्रसिद्ध शायर संजीव प्रभाकर की गज़लों पर विस्तृत से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आशीर्वचन के तहत डॉ.कृष्ण कुमार ने ठीक ही लिखा है कि "गज़ल लिखना एक तपस्या है आप लाख नाक रगड़ ले मां सरस्वती की कृपा के बिना एक शेर गज़ल लिखना तो दूर की बात है l निश्चित तौर पर संजीव प्रभाकर ने यह तपस्या की है l उन पर मां सरस्वती की कृपा है  और शब्दों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत प्रतिभा। " खासकर कई प्रेरणादायक बातें भी उन्होंने अपनी गज़लों के माध्यम से कहा है- "अपने पैरों में जो खड़ा होगा /, उसका कद हर जगह बड़ा होगा l"

            कार्यक्रम के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि संजीव प्रभाकर ने एकल काव्य पाठ के तहत अपनी एक दर्जन से अधिक गज़लों का पाठ कर ढेर सारे श्रोताओं को मनमुग्ध कर दिया l उन्होंने इस दौरान कहा कि - "कोई मंच कितना बड़ा है इसका मापदंड उसके सामने बैठे लोग होते हैं। इस हिसाब से  'अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ' का यह मंच मेरे लिए बहुत बड़ा है। जहाँ मेरे अभिभावक तुल्य साहित्यकार बैठे हुए हैं। आदरणीय सिद्धेश्वर जी के संयोजन और संचालन में देश और विदेश के साहित्यकारों को जोड़ने का सफल प्रयास इस मंच ने  किया है। इसलिए यह  कहना उचित होगा कि यह मंच अपने उद्देश्य में शत प्रतिशत सफल हुआ है। वक्त की तासीर के साथ शब्द के अर्थ भी बदलते हैं और परिभाषाएं भी बदलती हैं। डिजिटाइजेशन के इस युग में हर चीज का केंद्रीकरण हुआ है और इस कारण ही उत्कृष्ट साहित्य और सूचनाएँ सर्व सुलभ हुई हैं। समय के साथ चलते हुए अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका ने, इस क्षेत्र में अपना एक कीर्तिमान   स्थापित किया है। और इसका श्रेय संस्था के संयोजक, सूत्रधार और संचालक श्री सिद्धेश्वर जी को जाता है। 80 के दशक के लघुकथा आंदोलन से लेकर अभी तक इन्होंने साहित्य की समर्पण भाव से निस्वार्थ  सेवा की है। इन्होंने नए पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर सीखने -सिखाने की एक परंपरा की शुरुआत की। इनका यह कार्य निश्चित रूप से स्तुत्य है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपके रेखाचित्र देश के विभिन्न स्तरीय पत्र पत्रिकाओं के आमुख की शोभा बढ़ाते हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!

 कविता हमारी जरूरत है। इसमें हमारी चेतना सांस लेती है।भाव, अर्थ और अनुभूति काव्य के प्राण तत्व है तो अभिव्यक्ति तत्व काव्य का शरीर है। शब्दों के कौशलपूर्ण उपयोग से ही कथ्य प्रभावी बनता है।भाषा का सरल प्रवाह एक लय उत्पन्न करता है जिसके कारण भाषा कर्णप्रिय और सर्वग्राह्य बनती है। इसलिए काव्य में अनुशासन का महत्व बढ़ जाता है। काव्यों में छंदों के प्रयोग से यह अनुशासन पैदा होता है। इससे गेयता आती है। शब्द और संगीत में समन्वय तभी हो सकता है जब दोनों एक दूसरे के साथ कदम-ताल मिलाकर चलें। अर्थात् दोनों एक दूसरे को समझें।

 शब्द-खंडों की निश्चित बारंबारता से ही संगीत उत्पन्न होता है। इसलिए काव्य में नपे- तुले शब्दों का महत्व है । यह कहना गलत न होगा कि काव्य की हर विधा रूपवादी है। कविता की भूख जब तक आदमी में होगी तब तक आदमी जिंदा रहेगा। मुझे इस मंच पर मौका देने के लिए और मेरे ग़ज़ल संग्रह 'येऔर बात है' पर परिचर्चा करने के लिए इस मंच के सर्वेसर्वा  आदरणीय सिद्धेश्वर जी को बहुत-बहुत धन्यवाद! कार्यक्रम के सुंदर संयोजन और संचालन के लिए अध्यक्ष महोदया सुश्री रजनी श्रीवास्तव अनंता जी और संचालिका श्रीमती राज प्रिया रानी जी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।"

            अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में युवा कवयित्री रजनी श्रीवास्तव अनंता ने कहा कि समाज औऱ जीवन की व्यापक दृष्टि फलक मिलती है, संजीव प्रभाकर की गज़लों में l वैसे यह सच है कि सिद्धेश्वर जी और राज प्रिया  रानी जी के कुशल संचालन में बहुत सुंदर कार्यक्रम रहा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय संजीव प्रभाकर जी की गजलों ने समां बांध दिया। इसके अलावा श्रीमती चंद्रिका व्यास, श्री शंकर सिंह, श्रीमती विजयाकुमारी मौर्य, श्रीमती रत्ना जी, श्रीमती सुधा पांडे जी, डॉ.अनुज प्रभात, श्रीमती अलका वर्मा, श्रीमती सपना चंद्रा, युवा कवित्री प्रियंका जी, श्रीमती राज प्रिया रानी, श्री शरद नारायण खरे,और स्वयं अध्यक्ष आदरणीय सिद्धेश्वर जी ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मुझे इस शानदार कार्यक्रम में अध्यक्षता करने का मौका मिला और अपनी रचनाओं को सुनने का मौका मिला इसके लिए मैं मंच के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।

                  हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख कवि थे- सर्वश्री संजीव प्रभाकर, शंकर, सुधा पांडेय , इंदु उपाध्याय,राज प्रिया रानी, सिद्धेश्वर, रजनी श्रीवास्तव अनंता,घनश्याम राम ,विजय कुमारी मौर्य, प्रियंका रतन, डॉ.अनुज प्रभात, चंद्रिका व्यास, डॉ अलका वर्मा, सपना चंद्रा आदि l दूसरे सत्र का संचालन किया युवा कवयित्री राज प्रिया रानी ने । 

         इस गोष्ठी में दुर्गेश मोहन, सुनील कुमार उपाध्याय, संजीव, कल्पना कुमारी, रशीद गौरी, आदि की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही l

♦️ प्रस्तुति राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






9/19/23

lआकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है ,गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं !': सिद्धेश्वर


  " lआकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है ,गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं !': सिद्धेश्वर

भाव, भाषा और प्रस्तुति  का सुन्दर  समन्वय देखने को मिलता है गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में !:इंदु उपाध्याय

           


         पटना :19/9/23!  हिंदी साहित्य में लघुकथा सृजन की प्रक्रिया, अब कोई नई विधा  नहीं रह गई है l आठवें दशक से ही लघुकथा 'एक लघुकथा आंदोलन' के रूप में विकसित होकर, विश्व में इस तरह प्रसिद्ध हो गई है कि आज यह एक साहित्यिक विधा भी है और हिंदी साहित्य के लिए धरोहर भी  l छोटे आकार वाली लघुकथाओं के माध्यम से ही प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद , खलील जिब्रान, मंटो आदि जैसे लेखकों ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर विशेष रूप से खींचा l

ऐसी ही छोटे आकार वाली लघुकथाओं के माध्यम से, पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में गोविंद भारद्वाज काफ़ी आगे नजर आते हैं l अधिक शब्दों का खर्च कर बड़े आकार में कविता या लघुकथा लिखना आसान हो सकता है, किंतु कहानी और उपन्यास नहीं  l बल्कि कविता और लघुकथा के मायने से,शब्दों की कंजूसी एक सफल लेखक की पहली पहचान बनती है l

     गोविंद भारद्वाज की तमाम लघुकथाओं को पढ़ने के बाद विश्वास के साथ हम  कह सकते हैं कि कम शब्दों में बड़ी बात कहना गोविंद भारद्वाज की लघुकथा की विशेषता है l आकार में छोटी मगर भाव में गंभीरता लिए होती है गोविंद भारद्वाज की लघुकथाएं जो जन मानस के हृदय की धड़़कन बनने में पूरी तरह सक्षम है l

         भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में

, गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर  साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर,   संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने डॉ गोविंद भारद्वाज की चुनी हुई लघुकथाओं पर लिखी गई अपनी डायरी प्रस्तुत करते हुए कहा कि --सार्थक लघुकथाएं एक दृष्टि में पढ़े जाने वाली नहीं होती बल्कि रुक रुक कर समझने और रसास्वादन लेने वाली होती है l कुछ ऐसी ही लघुकथाओं का सृजन आजकल गोविंद भारद्वाज कर रहे हैं l

       मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित साहित्यकार गोविंद भारद्वाज  ने कहा कि-  -लघुकथा में पैनी धार होनी चाहिए। कथ्य, शैली और कसावट लिए लघुकथा होनी चाहिए। शीर्षक बड़े न हों और शीर्षक के माध्यम से लघुकथा को खोले नहीं। एक से अधिक घटनाओं पर आधारित लघुकथा से बचना चाहिए। नयी थीम पर लघुकथा लिखनी चाहिए। आधुनिक घटनाओं का समावेश लघुकथा में होना चाहिए।

         हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन की सार्थकता को रेखांकित करते हुए सपना चंद्रा ने  कहा कि - साहित्यकार और चित्रकार सिद्धेश्वर जी के नेतृत्व में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् ने पिछले चार दशकों से नवोदित,युवा एवं प्रतिष्ठित लघुकथाकारों को जोड़ने व विधा की सर्जनात्मकता को अभिनव आयाम देने में सकारात्मक भूमिका का निर्वाह किया है, जो अभिनंदनीय व प्रशंसनीय है।"

                      अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ इंदु उपाध्याय ने कहा कि- भाव, भाषा और प्रस्तुति  के  सुन्दर  समन्वय  गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में देखने को मिलता है  l वस्तुत: लघुकथा विस्तृत  वर्णन  या विवरण  नहीं  है और न कोरा सन्देश  है। यह  जीवन के क्षण  विशेष की गहन  अनुभूति  का सांकेतिक  चित्रण  है। सिद्धेश्वर जी ने ठीक कहा है कि लघुकथाकारों को काल दोष से बचना चाहिएl

               उन्होंने अपने वक्तव्य को विस्तार देते हुए कहा कि--"आज हैलो लघुकथा मंच पर लघुकथा सम्मेलन का आयोजन हुआ है। इस मंच के सर्वेसर्वा श्री सिद्धेश्वर जी ने मुझे अध्यक्षता की जिम्मेदारी सौंपी। वैसे ऑनलाइन लघुकथा पाठ की शुरुआत करने का श्रेय तो इन्हें जाता है पर एकल पाठ यानि एक ही लघुकथाकार की 8 - 10 रचनाओं का पाठ हो ताकि रचनाकार का सही मूल्यांकन किया जाए,उनके द्वारा की गई यह शुरुआत  अब एक अच्छी परंपरा बनती जा रही है। आज मुख्य अतिथि गोविंद भारद्वाज का एकल पाठ हुआ। उन्होंने अपनी एक दर्ज़न ताजा तरीन लघुकथाओं का पाठ कियाl इनकी रचनाएँ काफी सराही गई हैं और पाठ्यक्रम में भी शामिल है। मैं इन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। इन्होंने अपने साझा संकलन में मेरी रचनाओं को स्थान दिया है। लघुकथा पर बस इतना कहना चाहता हूं- ' हंसी- खुशी और मानव मन की व्यथा, शब्दों से संवर कर बन जाती है लघुकथा। '"   

  हेलो फेसबुक लघु कथा सम्मेलन  में देशभर के नए पुराने लघुकथाकारों ने जबरदस्त लघुकथाओं को प्रस्तुत कर, लघु कथा के सृजनात्मक विकास का उदाहरण प्रस्तुत किया  l अपनी-अपनी लघुकथाओं को प्रस्तुत करने वालों में प्रमुख थे -- इंदु उपाध्याय,मीना कुमारी परिहार, नलिनी श्रीवास्तव, रजनी श्रीवास्तव अनंता, राज प्रिया रानी, ऋचा वर्मा, चंद्रिका व्यास,  सपना चंद्रा,सुनीता मिश्रा आदि l

          इनके अतिरिक्त इस ऑनलाइन सम्मेलन में गार्गी राय,अपूर्व कुमार, रशीद गौरी, नंद कुमार मिश्र, सुनील कुमार उपाध्याय,  संतोष मालवीय, वर्षा अग्रवाल, विनोद नायक आदि की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही l अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया संस्था की सचिव ऋचा वर्मा ने l


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{ प्रस्तुति ; राज प्रिया रानी  [ उपाध्यक्ष ] एवं सिद्धेश्वर  [ अध्यक्ष ]/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद / पटना /  बिहार  /

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)





9/17/23

DigiTek Best Wireless Mic For Video Creater

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9/12/23

मगसम द्वारा एक शाम माँ के नाम कार्यक्रम हुआ आयोजित, कवियों को किया गया सम्मानित।

पूर्णियाँ (बिहार) निवासी छन्द-शिरोमणि कवि बाबा बैद्यनाथ झा को मिला-' लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न, 2022-23' तथा 'साहित्य महोत्सव स्वर्ण रचना सम्मान, 2023'

      


हिन्दी साहित्य का चर्चित समूह "मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच (मगसम) की ओर से उसके राष्ट्रीय संयोजक श्री सुधीर सिंह सुधाकर जी (दिल्ली) ने दिनांक 09 सितम्बर,2023 को " स्काउट भवन, जिला स्कूल, पूर्णियाँ (बिहार) में चर्चित वयोवृद्ध कवि प्रो0 देवनारायण पासवान देव जी की अध्यक्षता में "एक शाम माँ के नाम" शीर्षक पर आधारित भव्य कविगोष्ठी में पूर्णियाँ निवासी प्रख्यात छन्द-मर्मज्ञ, गीतकार एवं ग़ज़लकार बाबा बैद्यनाथ झा (पूर्णियाँ, बिहार) को समूह का सर्वोच्च "लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मान, 2022-23" तथा माँ पर आधारित रचना लेखन के लिए आयोजित प्रतियोगिता में विश्व के 49890 रचनाकारों की रचनाओं में 5वाँ स्थान प्राप्त करने पर इन्हें "साहित्य महोत्सव स्वर्ण रचना सम्मान, 2023" से रेशमी चादर, स्मृति चिह्न देकर सम्मानित कर गौरवान्वित किया है।

     इस अवसर पर उनके अतिरिक्त चर्चित कवयित्री मंजुला उपाध्याय मंजुल, कवि गोपाल चन्द्र घोष मंगलम, गंगेश पाठक, कैलाश बिहारी चौधरी, डाॅ0 किशोर कुमार यादव, हरे कृष्ण प्रकाश, अंजू दास गीतांजलि, दीपिका आनन्द, मनोज राय आदि ने माँ पर आधारित अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर "मगसम" की ओर से ही मंगलम जी को "वरीय श्रेष्ठ रचनाकार-सम्मान " तथा अन्य सभी कलमकारो को  कार्यक्रम सहभागिता-सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया। 

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  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

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9/9/23

तिरंगा चाँद पर फहरा, बढ़ाया मान भारत का (गीतिका):- बाबा बैद्यनाथ झा

तिरंगा चाँद पर फहरा, बढ़ाया मान भारत का (गीतिका)

:- बाबा बैद्यनाथ झा

 आधार :- "विधाता छन्द" (गीतिका)

समान्त- "आन"

पदान्त- "भारत का"


गया सकुशल पहुँच अपना, वहाँ प्रज्ञान भारत का।

तिरंगा चाँद पर फहरा, बढ़ाया मान भारत का।


परिश्रम हो गया सार्थक, हुए तब धन्य वैज्ञानिक,

विजयश्री देख जग करता, अभी यशगान भारत का।


सभी सम्पन्न देशों का, हुआ है दर्प अब खण्डित,

सबल हम हैं दिखा सबको, कराया भान भारत का।


सदा आलोचना करते, अचम्भित लोग वे ही अब, 

प्रगति के गीत गा करते, सुधा रसपान भारत का। 


यहाँ  पर  घात करते हैं, कई जयचन्द ही घर के,

दनुज वे चाहते होना, सदा अवसान भारत का।


कहो  अब  कौन  रोकेगा, हमारे इस विजय रथ को?

अभी जग और देखेगा, सफल अभियान भारत का।


कृपा है कृष्ण की "बाबा", हमारे देश के ऊपर,

सतत होता रहेगा अब, क्रमिक उत्थान भारत का।


©️बाबा बैद्यनाथ झा

   पूर्णियाँ(बिहार)


This poem is composed by Kislay Kishore. Many many congratulations and many best wishes from the Sahitya AajKal team for creating the best creation.

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)






8/28/23

Best practices set for stet 2023

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8/27/23

जिन्दगी (कविता):- किसलय किशोर

   जिन्दगी (कविता):- किसलय किशोर 

शीर्षक :- जिन्दगी

नित्य नए संघर्षों से भरी,

कभी जीत की खुशी,

तो कभी हार का गम,

उलझन सी है जिन्दगी।।


मार्ग के बाधाओं को धकेलती,

नित्य नए राह बनाती,

पूर्णता से जा मिलती,

धारा सी है जिन्दगी।।


सीधे पथरीले संकरीले,

घुमावदार रास्तों सी,

हर पल नए सबक सिखाती,

पाठशाला सी है जिन्दगी।।


इठलाती बलखाती लहराती,

लहरों के थपेड़ों से लड़ती,

कभी हिचकोले खाती,

 तो कभी संभलती,

भंवर में पड़ी नाव सी है जिन्दगी।।

   ©रचनाकार:- आ० किसलय किशोर

         (मुजफ्फरपुर, बिहार)

This poem is composed by Kislay Kishore. Many many congratulations and many best wishes from the Sahitya AajKal team for creating the best creation.

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    हरे कृष्ण प्रकाश 

  (युवा कवि, पूर्णियां बिहार)

   (साहित्य आजकल व साहित्य संसार)







8/26/23

व्यापक समाज में कविता की स्वीकार्यता लगभग नहीं के बराबर है !: सिद्धेश्वर

व्यापक समाज में कविता की स्वीकार्यता लगभग नहीं के बराबर है !: सिद्धेश्वर 

          पटना ! 26/08 /23! कविता की बारीकियों को समझने के लिए, ऑनलाइन या ऑफलाइन कविता की पाठशाला की सख्त जरूरत है l हमने इसी उद्देश्य से ऑनलाइन इस पाठशाला को चला रखा है l हमें खुशी है कि इस पाठशाला से नए कवि कुछ सीख रहे हैं और पहले से बेहतर सृजन कर रहे हैं l लघुकथा से कविता सृजन की ओर मुड़ गए हैँ और पहले से बेहतर लिख रहे हैं l विद्वान होना अलग बात है और साहित्यकार होना अलग l एक विद्वान जरूरी नहीं कि एक साहित्यकार भी हो l ठीक उसी प्रकार एक साहित्यकार जरूरी नहीं कि विद्वान भी हो l एक विद्वान साहित्यकार भी हो, तो अति उत्तम l किंतु विद्वान होना, साहित्यकार होने की पहचान नहीं होना चाहिए l कारण कई बार साहित्यकार इतनी अच्छी रचनाओं का सृजन कर लेता है कि व्याकरण संबंधी दोष के बावजूद उसे संशोधित कर प्रकाशित करना अनिवार्य लगता है l दूसरी तरफ विद्वान साहित्यकार की कई रचनाएं ऐसी होती है, कि व्याकरण या हिंदी का दोष नहीं रहने के बावजूद, वह रचना प्रभावकारी नहीं होती, अस्तरीय होती है l जिनका प्रकाशन कोई खास मायने नहीं रखता l

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          शायद इसीलिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान साहित्यकार एक सफल संपादक भी थे और वे नए पुराने रचनाकारों की वैसी रचनाओं को संशोधित कर प्रकाशित करते थे, जो रचनात्मक स्तर पर उच्च कोटि की होती थी l वे रचनाओं पर मेहनत करते थे, उसका संशोधन करते थे l और कई बार विद्वान रचनाकारों की अस्तरीय रचनाओं को स्थान नहीं देते थे l निष्पक्षता निर्भीकता और श्रेष्ठ संपादन की यह पहली शर्त होती है l लेकिन आज के संपादक ठीक इसके उल्टे विचार के होते हैं l उन्हें रेडीमेड सामग्री चाहिए जो सीधे पेस्ट कर सके l ऐसे में कई बार अच्छी रचनाएं पाठकों तक नहीं पहुंच पाती l

      अवसर साहित्य पाठशाला के 22 वें एपिसोड में, पूरे देश में पहली बार इस तरह का साहित्यिक पाठशाला का ऑनलाइन आयोजन करने वाले संयोजक सिद्धेश्वर ने, संचालन के क्रम में ऑनलाइन उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया!

         उन्होंने नए साहित्यकारों के संदर्भ में कहा क़ि पढ़ने की प्रवृत्ति भले ही पहले कम हो गई हो, लेकिन कविताएं खूब लिखी जा रही है ,कविता प्रकाशित भी खूब हो रही हैऔर कविता की पुस्तकें भी खूब आ रही है l लेकिन यह सारी सक्रियता एक तरफा है l कवि बिरादरी तो सक्रिय हैं, लेकिन व्यापक समाज में कविता की स्वीकार्यता लगभग नहीं के बराबर है l थोड़ी बहुत स्वीकार्यता है भी तो सिर्फ गीत और गजल जैसी छँद वाली कविताओं के प्रति l कुछ ऐसी ही स्थित लघुकथा और कहानी के प्रति भी देखी जा रही है l इसलिए जरूरी है कि आज के साहित्यकार साहित्य को गंभीरता से ले l सोशल मीडिया में भी कोई रचना डाले तो बहुत सोच समझकर और बेहतरीन रचनाएं l और बड़ी-बड़ी गोष्ठी में जाने के अपेक्षा छोटी-छोटी गोष्ठीयों में समय व्यय करें l खूब पढ़ने में समय व्यतीत करें, तब लिखें l तभी रचनाओं का स्तर में सुधार होगा और साहित्यकारों का कद भी बढ़ेगा l

विजयाकुमारी मौर्य ने कहा कि - बात सही कहा आपने सिद्धेश्वर जी। आजकल घर-घर कवि हैं,जो अपने अन्दर भाव उभरे और लिख डाली.. चाहे जैसी भी हो, नियम कानून से परे...हालांकि ऐसे कवियों को मार्गदर्शन की आवश्यकता है। यह मैं भी नहीं कहती कि मैं कविता में पूर्ण हूँ। सुधा पांडे ने कहा-"आलोचना से ही प्रखरता आती हैl" जबकि नमिता सिंह ने कहा -" अच्छा रचनाकार बनने के लिए आलोचनाओं को सकारात्मकता से से लेना अत्यंत आवश्यक है l" माधवी जैन ने कहा क़ि छन्दमुक्त कविता में कथ्य के साथ लयात्मकता नहीं हो तो वह सपाट बयानी है ,कविता नहीं lअखोरी चंद्रशेखर ने कहा -"छन्दमुक्त कविता में कथ्य के साथ लयात्मकता भी होनी चाहिए ।" हरि नारायण हरि ने कहा कि -आपका काम ही साहित्य-सृजन करना और साहित्यकारों को मंच प्रदान करना है। साहित्य साधना है। आज के साहित्यकार साधना करना नहीं चाहते और इच्छा रखते हैं कि एक-दो कविता लिखकर महान कहलायें!

                  इनके अतिरिक्त हरि नारायण हरि , पंकज करण,सुधा पांडेय पुष्प रंजन,इंदु उपाध्याय,माधवी जैन, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, इंदू उपाध्याय, निर्मल कुमार दे,माधुरी जैन,डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, अंकेश कुमार,अंजू श्रीवास्तव निगम,अखोरी चंद्रशेखर,अनिरुद्ध झा दिवाकर, संजय श्रीवास्तव, पूनम अनूप शर्मा, , विजयाकुमारी मौर्य,आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और चर्चा में भाग लिया!

[] प्रस्तुति :,ऋचा वर्मा ( सचिन )एवं सिद्धेश्वर/ अध्यक्ष भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना!

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हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

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8/7/23

साहित्यिक सम्मान समारोह' साहित्यिक कम,सरकारी अधिक लगता है : सिद्धेश्वर

'साहित्यिक सम्मान समारोह' साहित्यिक कम,सरकारी अधिक लगता है  : सिद्धेश्वर 

       पटना : 07/08/2023 l साहित्यिक समारोह , गैर सरकारी हो या सरकारी, लेखकों पत्रकारों और श्रोताओं के बीच में ही सुशोभित होता  है l सिर्फ पुरस्कार पाने वाले लेखकों, उनके परिवार के सदस्यों, विधायको, मंत्रियों के बीच गोपनीय रूप से बिल्कुल नहीं  l आम लेखकों और श्रोताओं के अभाव में ऐसा 'साहित्यिक सम्मान समारोह' साहित्यिक कम, सरकारी अधिक लगता है l यह साहित्यकारों का सम्मान है या अपमान ? क्योंकि यहां पर बात  साहित्यकारों के स्वाभिमान की है l

        भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर कवि, कथाकार सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन 'तेरे मेरे दिल की बात' एपिसोड ( 30 ) में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उनकी यह चर्चा साहित्यिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक संदर्भों से जुड़ी हुई होती है l एक घंटे के इस लाइव  एपिसोड के भाग :30 में " साहित्यिक समारोह  बन गया सरकारी समारोह " के  संदर्भ में उन्होंने विस्तार से आगे कहा कि -

       जो साहित्यकार अपने जीवन काल में आर्थिक अभाव के कारण एक पुस्तक भी प्रकाशित नहीं कर पाता , और कोई छोटा-मोटा सरकारी पुरस्कार भी उसे प्राप्त नहीं होता तो ऐसे में उसके मान -सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा कौन करेगा ?  उसके सामने आर्थिक रुप से संपन्न साहित्यकारों को और कई बार सम्मानित हुए  साहित्यकारों को अच्छे-अच्छे पुरस्कार और मान सम्मान सब कुछ मिल जाता है ! यह सब कुछ देख कर अधिकांश साहित्यकार की आत्मा को पीड़ा नहीं पहुंचती है क्या ? "

"  हालांकि सच यह भी है कि  जो सच्चा साहित्य साधक होता है , उसे पीड़ा पहुंचती भी है तो वह  उसे भुला देता है  l वह अपने साहित्य सृजन कर्म में लगातार जुटा रहता है, कलम का मजदूर बनकर, कलम का सिपाही बनकर  l एक सच्चा मजदूर, फसल की चिंता में, अपना श्रम कभी कम नहीं करता, एक सच्चा सिपाही , अपने दुश्मनों को देखकर, कभी हार नहीं मानता, कभी पीछे नहीं हटता l यदि जीत और हार ही हमारी किस्मत है , तो कर्म हमारा धर्म है  l और सच्चा साहित्यकार हो या सेवक, किसान हो या मजदूर,  अपना धर्म,  क्या कभी छोड़ सकता है  ?  "

                    सिद्धेश्वर के  व्यक्त किए गए विचार पर ऋचा वर्मा ने कहा   -  "   किसी ने कहा है साहित्य, रोटी कमाना तो नहीं पर रोटी खाना तो जरूर सिखाता है ।यह हमें जीने की तमीज सिखाता है। इस तरह साहित्यकारों का योगदान समाज के निर्माण में बहुत ही प्रमुख होता है। साहित्यकार जो अपना तन मन धन अर्पित कर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें पुरस्कृत किया जाना हर साहित्य प्रेमी के लिए गौरव के क्षण होते हैं हर साहित्य प्रेमी उन क्षणों  का साक्षी बनना चाहता है। अब अगर ऐसे साहित्य प्रेमी जो एक पत्रकार की भूमिका में साहित्य पुरस्कार वितरण पलों को अपने कैमरे में कैद कर और पुरस्कृत  साहित्यकारों के विचार आम पाठकों तक लाना चाहते हैं अगर उन्हें सरकार द्वारा आयोजित समारोह में प्रवेश तक नहीं मिलता है तो फिर आम जनता उन पलों से परिचित कैसे हो पाएगी। इसलिए समाज में साहित्य प्रचार -प्रसार के लिए यह आवश्यक है साहित्य संबंधी किसी भी गतिविधि में आम लोगों की भी सहभागिता हो, जिससे लोग निकट साहित्य को देख सकें,सुन सकें और समझ सकें।

             लखनऊ से विजया कुमार मौर्य ने कहा कि -"साहित्य को समृद्ध बनाने और संस्कृति को सुदृढ करने की दिशा में प्रत्येक जनपद जिला भाषा अधिकारी की महत्व भूमिका रहती है। 

दूसरी ओर कुछ सरकारी आयोजनों के प्रबन्धन को ठेकेदारी अथवा आउटसोर्स पद्धति पर भी देने का प्रयास होने लगा है। ऐसी परम्परा को साहित्यकारों के हित में स्वस्थ परंपरा नहीं माना जा सकता। 

कई जिलों में मासिक अथवा द्विमासिक गोष्ठियाँ भी होती हैं इसी प्रकार प्रदेश के अन्य जिलों की साहित्यिक गतिविधियां भी कवियों-लेखकों की प्रेरणा एवं प्रस्तुति का माध्यम समय-समय पर बनता रहता है। 

ऐसे में साहित्यकारों के अलग अलग मत हैं। "

रमेश चंद्र मस्ताना कहते हैं कि वर्ष 2019 के साहित्यिक परिदृश्य पर यदि विहंगम दृष्टिपात किया जाय तो कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी सामने आयी हैं। 

🔷 इंदु उपाध्याय ने कहा कि -मेरे विचार से साहित्य हमारा भाव है जो समाज का आईना है। जो समाज की कुरीतियों से रूबरू कराता है ।जिससे उसको दूर करने में सहायता मिलती है। यह एक ऐसा एहसास है जो लहू से सींचा जाता है और तब पन्नों पर उतरता है। एक तरह से हमारे जिगर का टुकड़ा है, हमारी संतान की तरह है। इसे राजनीति से दूर ही रखना चाहिए वरना इसकी छवि धूमिल हो सकती है ।साहित्य और राजनीति का कोई मिल नहीं ।जिसे साहित्य से कोई मतलब नहीं उसे, उसके साथ मंच साझा करना मुझे समझ नहीं आ रहा है । मुझे तो सही नहीं लग रहा है। साहित्य प्रेमियों के लिए साहित्य उनका जीवन है ।साहित्य को जीवंत रखने के लिए उसे राजनीति से दूर रखना होगा, इसके लिए स्वतंत्र मंच चाहिए जहां वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति खुलकर कर सके और साहित्य को पोषित कर सके जिसे साहित्य का विस्तार हो। " 

         इनके अतिरिक्त रजनी श्रीवास्तव अंतरा ",विजय कुमारी मौर्य, एकलव्य केसरी, अपूर्व कुमार ,सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज,सपना चंद्रा, संतोष मालवीय, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र,चैतन्य किरण,  शैलेंद्र सिंह, संतोष मालवीय,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l

♦️🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा (सचिव)/ सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद

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