शरद नारायण खरे : गीत-परंपरा के सशक्त संवाहक!: सिद्धेश्वर
फिल्मों में भी अब वे मधुर, अर्थपूर्ण और भावप्रधान गीत विरले ही सुनाई देते हैं, जो कभी जन-जन के हृदय में गूंजते थे। दरअसल, गीत केवल तुकांत पंक्तियों का समूह नहीं होता, बल्कि वह भाव और विचार का ऐसा संगीत है जो सीधे हृदय के तारों को छू लेता है।किसी भी सशक्त गीत में दो तत्व अनिवार्य होते हैं — नवीन विचार और सजीव भावाभिव्यक्ति। आज ऐसे गीतकार बहुत कम हैं जो इन दोनों गुणों का संतुलन साध सकें।इन्हीं विरले रचनाकारों में एक प्रतिष्ठित नाम है — डॉ. शरद नारायण खरे।
डॉ. खरे ने अपने गीतों में युगबोध, संवेदना और जीवन-सत्य — तीनों का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया है। वे गीत के माध्यम से समय के अंतर्विरोधों और समाज के बदलते मूल्यों पर गहरी दृष्टि डालते हैं।
उनके एक गीत की पंक्तियाँ इस दृष्टि से अत्यंत मार्मिक हैं —
“दिल छोटे, पर मकां हैं बड़े, सारे भाई न्यारे,अपने तक सारे हैं सीमित, नहीं परस्पर प्यारे।”
साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में गूगल मीट के माध्यम से तथा यूट्यूब पर लाइव प्रसारित “हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन” का संचालन करते हुए कार्यक्रम के संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए।
समकालीन कविता के आकार-प्रकार पर उन्होंने अपनी डायरी से भी कुछ अंश प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष ने अपने कुछ उत्कृष्ट गीतों का पाठ किया। अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में उन्होंने कहा —" पत्रिका हो या सोशल मीडिया, साहित्य के लिए कुछ समय देना ही श्रेष्ठ रचनाओं के सृजन का माध्यम बनता है। आज अधिकांश रचनाकार प्रकाशित होना तो चाहते हैं, किंतु पढ़ना और सुनना उन्हें पसंद नहीं। वे केवल अपनी रचनाओं की प्रस्तुति के पीछे व्यस्त रहते हैं, पर दूसरों की रचनाओं को सुनने-पढ़ने में रुचि नहीं लेते — यही आज के रचनाकार और साहित्य दोनों की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
आज इस मंच पर जुड़े सभी रचनाकार अंत तक बने रहे और अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से सम्मेलन को सार्थक बनाया। सिद्धेश्वर के संयोजन में जुड़ना अपने आप में एक उपलब्धि है।”
देशभर के एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपनी सशक्त रचनाओं का पाठ किया।
डॉ. शरद नारायण खरे ने अपने अंदाज में कई गीत और मुक्तक प्रस्तुत किए —
“तुम्हारी याद को हमने अभी भी है सँजो रक्खा,
दुआओं में, वफ़ाओं में अभी भी है छुपा रक्खा।”
संचालन के क्रम में सिद्धेश्वर ने अपनी आज़ाद शायरियाँ सुनाकर सभी को आकर्षित किया —
“तुमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा होना मेरी किस्मत,प्यार में नुक़सान-नफ़ा होना मेरी किस्मत।,हसरत ही रह जाएगी तुमसे रू-ब-रू होने की, ख्वाबों में मिलना कई दफ़ा — मेरी किस्मत।”
कवि नरेन्द्र कुमार ने “मतदान” पर एक प्रेरक कविता सुनाई —
“करो मतदान, करो मतदान,पहले मतदान, फिर और काम।”
वहीं निर्मला कर्ण ने छठ पूजा पर एक सुंदर कविता प्रस्तुत की —
“षष्ठी पूजा के लिए हुए सभी तैयार,छठ माता की वंदना करेंगे सपरिवार।”
नंदकुमार आदित्य ने भोजपुरी में रचना प्रस्तुत की —“सेल्फी नीके आई बाकिर लील सकेला रेत प गोह,
एही से कहेले ‘नक्कू’ छोड़ दिहीं रंगरेजिया मोह।”
अलका जैन ने सर्दियों की बारीक भावनाओं पर मुक्तक पढ़े —
“आ गया मौसम सुहाना सर्दियों का,रुठना फिर मान जाना सर्दियों का।”
डॉ. प्रीतम कुमार झा ने अपने हास्य-व्यंग्य और गीतों से वातावरण जीवंत कर दिया —
“सागर जिसे वंदन करे, पर्वत उतारे आरती,माँ भारती, माँ भारती,हर प्राणी के भाग्य को, हाथ से जो सँवारती — माँ भारती।”
वरिष्ठ कवयित्री पूजा रवि ने अपनी आज़ाद ग़ज़ल से समापन को उत्कर्ष पर पहुँचा दिया —
“ख़यालों में तुमने मुझे यूँ सताया,रातों को कितना मुझे यूँ जगाया।कहीं जिस नज़र ने किया खूब जादू,
उसी ने हमें आज कितना रुलाया।”
इनके अतिरिक्त देशभर से जुड़े अन्य कवियों में प्रमुख रहे — विज्ञान व्रत, ऋचा वर्मा, संपत्ति कुमारी, डॉ. सरिता गर्ग, राज प्रिया रानी और सोनू।
कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन राज प्रिया रानी (कार्यक्रम प्रभारी) ने किया।
📘 प्रस्तुति: बीना गुप्ता
(जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना)
नोट:- अपनी रचना प्रकाशन या वीडियो साहित्य आजकल से प्रसारण हेतु साहित्य आजकल टीम को 9709772649 पर व्हाट्सएप कर संपर्क करें, या हमारे अधिकारीक ईमेल sahityaaajkal9@gmail.com पर भेजें।
धन्यवाद :- साहित्य आजकल टीम


































